रविवार, 4 मई 2025

मीरा के पद (MEERA KE PAD)

 

मीरा

1. पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?

मीरा श्री कृष्ण को सम्बोधित करते हुए कहती हैं कि हे श्री कृष्ण आप सदैव अपने भक्तों की पीड़ा दूर करते हैं। प्रभु! जिस प्रकार आपने द्रौपदी का वस्त्र बढ़ाकर भरी सभा में उसकी लाज रखी, नरसिंह का रुप धारण करके हिरण्यकश्यप को मारकर प्रहलाद को बचाया, मगरमच्छ ने जब हाथी को अपने मुँह में ले लिया तो उसे बचाया और उसकी पीड़ा हरी। अतः है प्रभु! इसी तरह मुझे भी सांसारिक बंधनों के हर संकट से बचाकर पीड़ा मुक्त करो अर्थात मुक्ति के लिए मार्ग प्रदर्शित करो।

2. दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्‍यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।

मीरा श्री कृष्ण को अपना सर्वस्व समर्पित कर चुकी हैं। वे कृष्ण की दासी बनकर तीन लाभ प्राप्त करना चाहती हैं।

·       कृष्ण के समीप रहकर उनके दर्शन का सुख।

·       उनके नाम का स्मरण कर स्मरण रूपी जेब-खर्च।

·       भक्ति रूपी जागीर की प्राप्ति

इन तीन स्थितियों को प्राप्त कर वे अपना जीवन सफल बनाना चाहती हैं।

3. मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कै से किया है?

मीराबाई कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि

·       कृष्ण ने सिर पर मोर मुकुट धारण किया हैं।

·       तन पर पीले वस्त्र हैं जो उन्हें सुशोभित कर रहे हैं।

·       गले में बैजयंती की माला है जो उनके सौंदर्य में चार चाँद लगा रही है

·      कृष्ण बाँसुरी बजाते हुए गायें चराते हैं तो उनका रूप बहुत ही मनोरम लगता है।

4. वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं? 

मीराबाई ने कृष्ण को प्रियतम के रूप में देखा है। वे उन्हें पाने के लिए अनेकों कार्य करने को तैयार हैं जैसे –

·       वह सेविका बन कर उनकी सेवा कर उनके साथ रहना चाहती हैं।

·       उनके विहार करने के लिए बाग बगीचे लगाना चाहती है।

·       वृंदावन की गलियों में उनकी लीलाओं का गुणगान करना चाहती हैं।

·       ऊँचे-ऊँचे महलों में खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं ताकि आसानी से कृष्ण के दर्शन कर सकें।

·       वे उनके दर्शन के लिए यमुना के तट पर आधी रात को भी प्रतीक्षा करने तैयार हैं।

·       वे अपने आराध्य को मिलने के लिए हर सम्भव प्रयास करने के लिए तैयार हैं।

5. मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।

मीराबाई के पदों की भाषागत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

·       पद राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में कुछ गुजराती शब्दों के प्रयोग के साथ लिखे गए हैं।

·       पदों में सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा है।

·       पदावली कोमल,भावानुकूल व प्रवाहमयी है।

·       इनमें अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रुपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकार का प्रयोग हुआ है।

·       इन पदों में माधुर्य गुण प्रमुख है और शांत रस के दर्शन होते हैं।

6. हरि आप हरो............................हरो म्हारी भीर। पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -

v राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।

v भक्ति रस है।

v अनुप्रास अलंकार की छटा है।

Ø काटी-कुंजर

v कृष्ण के अनेक नामों से काव्य की सुंदरता बढ़ी है हरि, गिरधर, लाल आदि।

vभीर,चीर,सरीर,पीर जैसे तुकांत शब्दों के साथ काव्य में संगीतात्मकता व गेयता है। 

7. स्याम म्हाने चाकर रखो जी.....................................हिवड़ों घणों अधीराँ । पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -

v राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।

v भक्ति रस है।

v अनुप्रास अलंकार की छटा है।

Ø भाव भगती

Ø मोर-मुगुट

v कृष्ण के अनेक नामों से काव्य की सुंदरता बढ़ी है हरि, गिरधर, लाल आदि।

v पास्यूँ-गास्यूँ, खरची-सरसी, माला-वाला, बारी-साड़ी, तीराँ-अधीराँ  जैसे तुकांत शब्दों के साथ काव्य में संगीतात्मकता व गेयता है।

गुरुवार, 1 मई 2025

साखी - कबीर (SAKHI KABEER)

 

साखी

- कबीर

1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

मीठी वाणी से अपने तन को शीतलता तथा औरों को सुख इसलिए मिलता है क्योंकि मीठी वाणी से मन का आपा (क्रोध) का भाव जो हम सभी को दुखी करता है वह मिट जाता है इसलिए मीठी वाणी बोलने से अपने तन को शीतलता तथा औरों को सुख मिलता है।

2. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

दीपक और अंधकार कभी भी एक साथ नहीं रह सकते यही कारण है की दीपक के दिखते ही अंधकार मिट जाता है कबीर इसके माध्यम से हमें यह समझाना चाहते हैं कि हमारे मन में ईश्वर और अहंकार दोनों एक साथ नहीं रह सकते यदि हमारे मन में अहंकार का वास है तो हमें ईश्वर की सत्ता का आभास नहीं हो सकता है और यदि हमें ईश्वर की सत्ता का आभास हो रहा है तो अहंकार की सत्ता अब हमारे अंदर नहीं मिलेगी।
(साखी में “मैं” का अर्थ अहंकार और “हरि” का अर्थ ईश्वर है।)

3. ईश्वर घट-घट में व्याप्त है, पर हम उसे क्‍यों नहीं देख पाते?

सच है कि ईश्वर घट-घट में यानि हमारे ही भीतर विद्यमान हैं पर हम उसे इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि हमारी दृष्टि हिरण की तरह बाहर ही ईश्वर की खोज कर रही है अपने अंतरंग में नहीं। यदि हमें भी ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो हमें अपना नज़रिया बदलने की आवश्यकता है।

4. संसार में सुखी और दुखी व्यक्ति कौन है? यहाँ 'सोना' और 'जागना' किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्‍यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

कबीर के अनुसार इस साखी में सोना अज्ञानता का प्रतीक है और जागना ज्ञानी होने का प्रतीक है। अब जो व्यक्ति सांसारिक दुखों में डूबकर भी अपने को सुखी मानकर मात्र भोग विलासिता में ही लगा है वह दूर से देखने पर भले ही सुखी दिखाई देता हो पर अंतराग से वह दुखी ही है।

            तथा जो सांसारिक दुखों में दुख की ही अनुभूति करता है वह भले ही दूर से रोता हुआ दिखाई दे पर अंतरंग से वह ईश्वर की आराधना में मस्त है। 

5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्‍या उपाय सुझाया है?

कबीर का कहना है कि यदि हम अपने स्वभाव को निर्मल, निष्कपट और सरल बनाए रखना चाहते हैं तो जो हमारी निंदा करने वाला निंदक व्यक्ति है, जो हमारी आलोचना करता है। हमें अपने आँगन में कुटी बनाकर उस निंदक को सम्मान के साथ रखना चाहिए। तथा वे हमारी जिन त्रुटियों को हमसे अवगत कराते हैं उन्हें दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल बना सकते हैं।

6. 'ऐके आषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई'- इस पंक्ति द्वारा कवि क्‍या कहना चाहता है?

कवि इस पंक्ति द्वारा यह कहना चाहता है कि मात्र पोथी पढ़कर कोई ज्ञानी, विद्वान नहीं बनता है। ज्ञानी विद्वान बनने के लिए प्रेम का एक अक्षर पढ़ना ही काफ़ी है। क्योंकि वस्तुतः जीवन का आधार प्रेम है। प्रेम अर्थात् सरलता, प्रेम अर्थात् वात्सल्य, प्रेम अर्थात् प्रमोदभाव, प्रेम अर्थात् करुणाभाव, प्रेम अर्थात् समताभाव।

            यदि कोई जीव पोथी पढ़कर भी अपने अंदर सरलता, वात्सल्य, प्रमोदभाव, करुणाभाव और समताभाव न ला सके तो वह पंडित अर्थात् ज्ञानी, विद्वान कैसे बन सकता है? लेकिन जिसने पोथी न पढ़ी हो और यदि उसके अंदर सरलता, वात्सल्य, प्रमोदभाव, करुणाभाव और समताभाव हो तो वह भी पंडित अर्थात् ज्ञानी, विद्वान ही कहलाता है।

7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।

कबीर का अनुभव क्षेत्र विस्तृत था। कबीर जगह-जगह भ्रमण कर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते थे। अत: उनके द्वारा रचित साखियों में अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी भाषाओं के शब्दों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसी कारण उनकी भाषा को 'पंचमेल खिचड़ी' कहा जाता है। कबीर की भाषा को सधुक्कडी भी कहा जाता है। वे जैसा बोलते थे वैसा ही लिखा गया है। भाषा में लयबद्धता, उपदेशात्मकता, सहजता के साथ प्रवाहपूर्ण सरल शैली है। लोकभाषा का भी प्रयोग हुआ है; जैसे - खायै, नेग, मुवा, जाल्या, आँगणि आदि।

8. बिरह भुवंगम तन बसे, मंत्र न लागै कोइ। भाव स्पष्ट कीजिए -

कबीर ने यहाँ विरह की वेदना को सर्पदंश माना है और इस विरह की वेदना में मनुष्य पर कोई मंत्र या दवा काम नहीं करती ऐसी स्थिति में मनुष्य की दो दशाएँ होती हैं –

1. या तो वह विरह की वेदना में में तड़पता हुआ पागलों सा जीवन व्यतीत करता है।

2. या फिर वह अपने प्राण त्याग देता है।

अतः राम अर्थात् ईश्वर का वियोगी व्यक्ति को जब तक उसे राम की प्राप्ति न हो जाए तक वह उपरोक्त दो स्थितियों में ही रहता है।

भाषा अध्ययन:

पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए।

जिवै      - जीना

औरन    - औरों को

माँहि      - के अंदर (में)

देख्या     - देखा

भुवंगम   - साँप

नेड़ा       - निकट

आँगणि - ऑगन

साबण    - साबुन

मुवा       - मुआ

पीव       - प्रेम

जालौं     - जलना

तास      - उसका 

बड़े भाई साहब (BADE BHAISAHAB)

बड़े भाई साहब

- प्रेमचंद

1. कथानायक की रुचि किन कार्यों में थी?

कथानायक की रुचि यों तो छोटे भाई की तरह सभी खेलकूद में, मैदानों की सुखद हरियाली में, कनकौए उड़ाने में,  कंकरियाँ उछालने में, कागज़ की तितलियाँ बनाकर उड़ाने में, चहारदीवारी पर चढ़कर ऊपर-नीचे कूदने आदि में ही हुआ करती थी पर वे बड़े थे और अपने छोटे भाई को बेराह नहीं चलना चाहते थे इसलिए वे अपनी रुचि पढ़ने लिखने के रूप में प्रदर्शित करते थे। 

2. बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्‍यों दबानी पड़ती थीं?

बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ इसलिए दबानी पड़ती थीं क्योंकि उन्हें अपने नैतिक कर्तव्य का ज्ञान था। वे ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहते थे जिससे उनके छोटे भाई पर बुरा असर पड़े।  अतः बड़े भाई होने के नाते वे अपने छोटे भाई के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहते थे और इसलिए उन्हें अपने मन की इच्छा दबानी पड़ती थी। 

3. बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्‍या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए।

निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी बांधाई।

बिन साबुन पानी बिना निर्मल करे सुभाई॥

बड़े भाई साहब छोटे भाई के जीवन में निंदक की तरह थे इसलिए ही बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती तो छोटा भाई कक्षा में अव्वल नहीं आता क्योंकि बुद्धि में अच्छा होने पर भी वह पढ़ाई में बिलकुल ध्यान नहीं देता था। यह बड़े भाई की डाँट-फटकार का ही अप्रत्यक्ष परिणाम था कि छोटा भाई थोड़ा बहुत पढ़कर ही कक्षा में अव्वल आ जाता था। 

 4. इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?

हाँ! मैं लेखक के विचारों से सहमत हूँ तथा उन्होंने शिक्षा जिन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है वे इसप्रकार हैं-

1. व्यावहारिक शिक्षा को पूरी तरह नजर अंदाज किया है।

2. बच्चों के ज्ञान कौशल को बढ़ाने की जगह उसे रट्टू तोता बनाने पर जोर दिया गया है जो कि सर्वाधिक अनुचित है।

3. परीक्षा प्रणाली में आंकड़ों को महत्त्व दिया गया है। बच्चों के सर्वागीण विकास की ओर शिक्षा प्रणाली कोई ध्यान नहीं देती है।

    परंतु अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत सरकार द्वारा शिक्षा प्रणाली में बदलाव का प्रयास किया है यह कितना सार्थक रूप लेगा यह देखने योग्य है।

5. बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?

बड़े भाई के अनुसार जीवन की समझ ज्ञान के साथ अनुभव और व्यावहारिकता से आती है, मात्र पुस्तकीय ज्ञान से नहीं। हमारे बड़े-बुजुर्गों ने भले कोई किताबी ज्ञान नहीं प्राप्त किया था परन्तु अपने अनुभव और व्यवहार के द्वारा उन्होंने अपने जीवन की हर परीक्षा को सफलतापूर्वक पार किया। अत: पुस्तकीय ज्ञान और अनुभव के तालमेल द्वारा जीवन की समझ आती है।

6. छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा कब और क्यों उत्पन्न हुई?

छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा तब उत्पन्न हुई जब उसे पता चला कि उसके बड़े भाई साहब मात्र उसे सही राह दिखाने के लिए अपनी कितनी ही इच्छाओं का दमन करते थे। 

7. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?

वे गंभीर तथा संयमी किस्म का व्यक्तित्व रखते थे तथा अपने उत्तरदायित्वों को अच्छी तरह समझते थे इसलिए अपने छोटे भाई को सही मार्ग पर लगाने के लिए उन्होंने अपनी कितनी ही इच्छाओं का दमन तक कर दिया था।

          बड़े भाई साहब कुशल वक्‍ता थे वे छोटे भाई को अनेकों उदाहारणों द्वारा जीवन जीने की समझ दिया करते थे।

          बड़े भाई साहब परिश्रमी विद्यार्थी थे। एक ही कक्षा में तीन बार फेल हो जाने के बाद भी उन्होंने पढाई से अपना नाता नहीं तोड़ा। 

8. बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि - 

(क) छोटा भाई अपने भाईसाहब का आदर करता है।

निम्नलिखित बातों से पता चलता है कि छोटा भाई अपने भाईसाहब का आदर करता है-

·       छोटा भाई अपने बड़े भाईसाहब के डाँटने पर कभी पलटकर जवाब नहीं देते थे।

·       स्वयं के कक्षा में अव्वल आने पर और बड़े भाईसाहब के फेल होने पर भी उन्हें कभी खरी खोटी नहीं सुनाई।

·       खेलकूद इत्यादि सारे काम बड़े भाई से बचकर करता था और पकड़े जाने पर उसे अपनी गलती मानता था।  

(ख) भाईसाहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है।

भाईसाहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है। पाठ के अंतर्गत हमें यह तब पता चलता है जब कनकौए लूटते वक्त उन्होंने छोटे भाई को डाँट लगाई। उस डाँट में यह स्पष्ट झलकता था कि भले ही वे कक्षा में तीन बार फ़ेल क्यों न हुए हों पर उन्हें जिंदगी का अच्छा अनुभव है।

(ग) भाईसाहब के भीतर भी एक बच्चा है। (घ) भाईसाहब छोटे भाई का भला चाहते हैं। 

भाईसाहब के भीतर भी एक बच्चा है पाठ के अंतर्गत हमें यह तब पता चलता है जब कनकौया लूटते समय वे छोटे भाई से वे अपने मन के भावों को व्यक्त करते हैं और कहते हैं कि मेरा भी जी ललचाता है; लेकिन करूँ क्या,  खुद बेराह चलूँ, तो तुम्हारी रक्षा कैसे करूँ?

          और इसी बात से यह भी पता चलता है कि छोटे भाई के प्रति जो व्यवहार भाईसाहब किया करते थे वह उसका भला चाहने के कारण करते थे न कि ईर्ष्या व द्वेष के कारण। 

9. बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्‍यों महत्वपूर्ण कहा है? अथवा इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज नहीं, असल चीज है बुद्धि का विकास। आशय स्पष्ट कीजिए।

उपरोक्त पंक्ति का आशय यही है कि मात्र किताबी ज्ञान से जीवन नहीं जिया जा सकता जीवन जीने के लिए ज़िंदगी से मिलने वाले अनुभव ज्ञान की आवश्यकता होती है कुछ इसीतरह की बात कबीर ने भी अपने दोहे में लिखी है कि –

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भय न कोई।

एकै आषिर पीव का, पढ़े सो पंडित होई॥

10. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था। आशय स्पष्ट कीजिए।

उपरोक्त पंक्ति का आशय यही है कि जीव की रुचि जहाँ होती है उसका पुरुषार्थ उसी दिशा में कार्य करता है फिर चाहे कोई कितना ही उसे डाँटा-फटकारा जाए, उस पर डाँट-फटकार का कोई असर नहीं होता है।