रविवार, 4 मई 2025

मीरा के पद (MEERA KE PAD)

 

मीरा

1. पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?

मीरा श्री कृष्ण को सम्बोधित करते हुए कहती हैं कि हे श्री कृष्ण आप सदैव अपने भक्तों की पीड़ा दूर करते हैं। प्रभु! जिस प्रकार आपने द्रौपदी का वस्त्र बढ़ाकर भरी सभा में उसकी लाज रखी, नरसिंह का रुप धारण करके हिरण्यकश्यप को मारकर प्रहलाद को बचाया, मगरमच्छ ने जब हाथी को अपने मुँह में ले लिया तो उसे बचाया और उसकी पीड़ा हरी। अतः है प्रभु! इसी तरह मुझे भी सांसारिक बंधनों के हर संकट से बचाकर पीड़ा मुक्त करो अर्थात मुक्ति के लिए मार्ग प्रदर्शित करो।

2. दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्‍यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।

मीरा श्री कृष्ण को अपना सर्वस्व समर्पित कर चुकी हैं। वे कृष्ण की दासी बनकर तीन लाभ प्राप्त करना चाहती हैं।

·       कृष्ण के समीप रहकर उनके दर्शन का सुख।

·       उनके नाम का स्मरण कर स्मरण रूपी जेब-खर्च।

·       भक्ति रूपी जागीर की प्राप्ति

इन तीन स्थितियों को प्राप्त कर वे अपना जीवन सफल बनाना चाहती हैं।

3. मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कै से किया है?

मीराबाई कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि

·       कृष्ण ने सिर पर मोर मुकुट धारण किया हैं।

·       तन पर पीले वस्त्र हैं जो उन्हें सुशोभित कर रहे हैं।

·       गले में बैजयंती की माला है जो उनके सौंदर्य में चार चाँद लगा रही है

·      कृष्ण बाँसुरी बजाते हुए गायें चराते हैं तो उनका रूप बहुत ही मनोरम लगता है।

4. वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं? 

मीराबाई ने कृष्ण को प्रियतम के रूप में देखा है। वे उन्हें पाने के लिए अनेकों कार्य करने को तैयार हैं जैसे –

·       वह सेविका बन कर उनकी सेवा कर उनके साथ रहना चाहती हैं।

·       उनके विहार करने के लिए बाग बगीचे लगाना चाहती है।

·       वृंदावन की गलियों में उनकी लीलाओं का गुणगान करना चाहती हैं।

·       ऊँचे-ऊँचे महलों में खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं ताकि आसानी से कृष्ण के दर्शन कर सकें।

·       वे उनके दर्शन के लिए यमुना के तट पर आधी रात को भी प्रतीक्षा करने तैयार हैं।

·       वे अपने आराध्य को मिलने के लिए हर सम्भव प्रयास करने के लिए तैयार हैं।

5. मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।

मीराबाई के पदों की भाषागत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

·       पद राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में कुछ गुजराती शब्दों के प्रयोग के साथ लिखे गए हैं।

·       पदों में सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा है।

·       पदावली कोमल,भावानुकूल व प्रवाहमयी है।

·       इनमें अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रुपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकार का प्रयोग हुआ है।

·       इन पदों में माधुर्य गुण प्रमुख है और शांत रस के दर्शन होते हैं।

6. हरि आप हरो............................हरो म्हारी भीर। पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -

v राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।

v भक्ति रस है।

v अनुप्रास अलंकार की छटा है।

Ø काटी-कुंजर

v कृष्ण के अनेक नामों से काव्य की सुंदरता बढ़ी है हरि, गिरधर, लाल आदि।

vभीर,चीर,सरीर,पीर जैसे तुकांत शब्दों के साथ काव्य में संगीतात्मकता व गेयता है। 

7. स्याम म्हाने चाकर रखो जी.....................................हिवड़ों घणों अधीराँ । पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -

v राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।

v भक्ति रस है।

v अनुप्रास अलंकार की छटा है।

Ø भाव भगती

Ø मोर-मुगुट

v कृष्ण के अनेक नामों से काव्य की सुंदरता बढ़ी है हरि, गिरधर, लाल आदि।

v पास्यूँ-गास्यूँ, खरची-सरसी, माला-वाला, बारी-साड़ी, तीराँ-अधीराँ  जैसे तुकांत शब्दों के साथ काव्य में संगीतात्मकता व गेयता है।

गुरुवार, 1 मई 2025

साखी - कबीर (SAKHI KABEER)

 

साखी

- कबीर

1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

मीठी वाणी से अपने तन को शीतलता तथा औरों को सुख इसलिए मिलता है क्योंकि मीठी वाणी से मन का आपा (क्रोध) का भाव जो हम सभी को दुखी करता है वह मिट जाता है इसलिए मीठी वाणी बोलने से अपने तन को शीतलता तथा औरों को सुख मिलता है।

2. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

दीपक और अंधकार कभी भी एक साथ नहीं रह सकते यही कारण है की दीपक के दिखते ही अंधकार मिट जाता है कबीर इसके माध्यम से हमें यह समझाना चाहते हैं कि हमारे मन में ईश्वर और अहंकार दोनों एक साथ नहीं रह सकते यदि हमारे मन में अहंकार का वास है तो हमें ईश्वर की सत्ता का आभास नहीं हो सकता है और यदि हमें ईश्वर की सत्ता का आभास हो रहा है तो अहंकार की सत्ता अब हमारे अंदर नहीं मिलेगी।
(साखी में “मैं” का अर्थ अहंकार और “हरि” का अर्थ ईश्वर है।)

3. ईश्वर घट-घट में व्याप्त है, पर हम उसे क्‍यों नहीं देख पाते?

सच है कि ईश्वर घट-घट में यानि हमारे ही भीतर विद्यमान हैं पर हम उसे इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि हमारी दृष्टि हिरण की तरह बाहर ही ईश्वर की खोज कर रही है अपने अंतरंग में नहीं। यदि हमें भी ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो हमें अपना नज़रिया बदलने की आवश्यकता है।

4. संसार में सुखी और दुखी व्यक्ति कौन है? यहाँ 'सोना' और 'जागना' किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्‍यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

कबीर के अनुसार इस साखी में सोना अज्ञानता का प्रतीक है और जागना ज्ञानी होने का प्रतीक है। अब जो व्यक्ति सांसारिक दुखों में डूबकर भी अपने को सुखी मानकर मात्र भोग विलासिता में ही लगा है वह दूर से देखने पर भले ही सुखी दिखाई देता हो पर अंतराग से वह दुखी ही है।

            तथा जो सांसारिक दुखों में दुख की ही अनुभूति करता है वह भले ही दूर से रोता हुआ दिखाई दे पर अंतरंग से वह ईश्वर की आराधना में मस्त है। 

5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्‍या उपाय सुझाया है?

कबीर का कहना है कि यदि हम अपने स्वभाव को निर्मल, निष्कपट और सरल बनाए रखना चाहते हैं तो जो हमारी निंदा करने वाला निंदक व्यक्ति है, जो हमारी आलोचना करता है। हमें अपने आँगन में कुटी बनाकर उस निंदक को सम्मान के साथ रखना चाहिए। तथा वे हमारी जिन त्रुटियों को हमसे अवगत कराते हैं उन्हें दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल बना सकते हैं।

6. 'ऐके आषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई'- इस पंक्ति द्वारा कवि क्‍या कहना चाहता है?

कवि इस पंक्ति द्वारा यह कहना चाहता है कि मात्र पोथी पढ़कर कोई ज्ञानी, विद्वान नहीं बनता है। ज्ञानी विद्वान बनने के लिए प्रेम का एक अक्षर पढ़ना ही काफ़ी है। क्योंकि वस्तुतः जीवन का आधार प्रेम है। प्रेम अर्थात् सरलता, प्रेम अर्थात् वात्सल्य, प्रेम अर्थात् प्रमोदभाव, प्रेम अर्थात् करुणाभाव, प्रेम अर्थात् समताभाव।

            यदि कोई जीव पोथी पढ़कर भी अपने अंदर सरलता, वात्सल्य, प्रमोदभाव, करुणाभाव और समताभाव न ला सके तो वह पंडित अर्थात् ज्ञानी, विद्वान कैसे बन सकता है? लेकिन जिसने पोथी न पढ़ी हो और यदि उसके अंदर सरलता, वात्सल्य, प्रमोदभाव, करुणाभाव और समताभाव हो तो वह भी पंडित अर्थात् ज्ञानी, विद्वान ही कहलाता है।

7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।

कबीर का अनुभव क्षेत्र विस्तृत था। कबीर जगह-जगह भ्रमण कर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते थे। अत: उनके द्वारा रचित साखियों में अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी भाषाओं के शब्दों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसी कारण उनकी भाषा को 'पंचमेल खिचड़ी' कहा जाता है। कबीर की भाषा को सधुक्कडी भी कहा जाता है। वे जैसा बोलते थे वैसा ही लिखा गया है। भाषा में लयबद्धता, उपदेशात्मकता, सहजता के साथ प्रवाहपूर्ण सरल शैली है। लोकभाषा का भी प्रयोग हुआ है; जैसे - खायै, नेग, मुवा, जाल्या, आँगणि आदि।

8. बिरह भुवंगम तन बसे, मंत्र न लागै कोइ। भाव स्पष्ट कीजिए -

कबीर ने यहाँ विरह की वेदना को सर्पदंश माना है और इस विरह की वेदना में मनुष्य पर कोई मंत्र या दवा काम नहीं करती ऐसी स्थिति में मनुष्य की दो दशाएँ होती हैं –

1. या तो वह विरह की वेदना में में तड़पता हुआ पागलों सा जीवन व्यतीत करता है।

2. या फिर वह अपने प्राण त्याग देता है।

अतः राम अर्थात् ईश्वर का वियोगी व्यक्ति को जब तक उसे राम की प्राप्ति न हो जाए तक वह उपरोक्त दो स्थितियों में ही रहता है।

भाषा अध्ययन:

पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए।

जिवै      - जीना

औरन    - औरों को

माँहि      - के अंदर (में)

देख्या     - देखा

भुवंगम   - साँप

नेड़ा       - निकट

आँगणि - ऑगन

साबण    - साबुन

मुवा       - मुआ

पीव       - प्रेम

जालौं     - जलना

तास      - उसका 

बड़े भाई साहब (BADE BHAISAHAB)

बड़े भाई साहब

- प्रेमचंद

1. कथानायक की रुचि किन कार्यों में थी?

कथानायक की रुचि यों तो छोटे भाई की तरह सभी खेलकूद में, मैदानों की सुखद हरियाली में, कनकौए उड़ाने में,  कंकरियाँ उछालने में, कागज़ की तितलियाँ बनाकर उड़ाने में, चहारदीवारी पर चढ़कर ऊपर-नीचे कूदने आदि में ही हुआ करती थी पर वे बड़े थे और अपने छोटे भाई को बेराह नहीं चलना चाहते थे इसलिए वे अपनी रुचि पढ़ने लिखने के रूप में प्रदर्शित करते थे। 

2. बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्‍यों दबानी पड़ती थीं?

बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ इसलिए दबानी पड़ती थीं क्योंकि उन्हें अपने नैतिक कर्तव्य का ज्ञान था। वे ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहते थे जिससे उनके छोटे भाई पर बुरा असर पड़े।  अतः बड़े भाई होने के नाते वे अपने छोटे भाई के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहते थे और इसलिए उन्हें अपने मन की इच्छा दबानी पड़ती थी। 

3. बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्‍या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए।

निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी बांधाई।

बिन साबुन पानी बिना निर्मल करे सुभाई॥

बड़े भाई साहब छोटे भाई के जीवन में निंदक की तरह थे इसलिए ही बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती तो छोटा भाई कक्षा में अव्वल नहीं आता क्योंकि बुद्धि में अच्छा होने पर भी वह पढ़ाई में बिलकुल ध्यान नहीं देता था। यह बड़े भाई की डाँट-फटकार का ही अप्रत्यक्ष परिणाम था कि छोटा भाई थोड़ा बहुत पढ़कर ही कक्षा में अव्वल आ जाता था। 

 4. इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?

हाँ! मैं लेखक के विचारों से सहमत हूँ तथा उन्होंने शिक्षा जिन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है वे इसप्रकार हैं-

1. व्यावहारिक शिक्षा को पूरी तरह नजर अंदाज किया है।

2. बच्चों के ज्ञान कौशल को बढ़ाने की जगह उसे रट्टू तोता बनाने पर जोर दिया गया है जो कि सर्वाधिक अनुचित है।

3. परीक्षा प्रणाली में आंकड़ों को महत्त्व दिया गया है। बच्चों के सर्वागीण विकास की ओर शिक्षा प्रणाली कोई ध्यान नहीं देती है।

    परंतु अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत सरकार द्वारा शिक्षा प्रणाली में बदलाव का प्रयास किया है यह कितना सार्थक रूप लेगा यह देखने योग्य है।

5. बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?

बड़े भाई के अनुसार जीवन की समझ ज्ञान के साथ अनुभव और व्यावहारिकता से आती है, मात्र पुस्तकीय ज्ञान से नहीं। हमारे बड़े-बुजुर्गों ने भले कोई किताबी ज्ञान नहीं प्राप्त किया था परन्तु अपने अनुभव और व्यवहार के द्वारा उन्होंने अपने जीवन की हर परीक्षा को सफलतापूर्वक पार किया। अत: पुस्तकीय ज्ञान और अनुभव के तालमेल द्वारा जीवन की समझ आती है।

6. छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा कब और क्यों उत्पन्न हुई?

छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा तब उत्पन्न हुई जब उसे पता चला कि उसके बड़े भाई साहब मात्र उसे सही राह दिखाने के लिए अपनी कितनी ही इच्छाओं का दमन करते थे। 

7. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?

वे गंभीर तथा संयमी किस्म का व्यक्तित्व रखते थे तथा अपने उत्तरदायित्वों को अच्छी तरह समझते थे इसलिए अपने छोटे भाई को सही मार्ग पर लगाने के लिए उन्होंने अपनी कितनी ही इच्छाओं का दमन तक कर दिया था।

          बड़े भाई साहब कुशल वक्‍ता थे वे छोटे भाई को अनेकों उदाहारणों द्वारा जीवन जीने की समझ दिया करते थे।

          बड़े भाई साहब परिश्रमी विद्यार्थी थे। एक ही कक्षा में तीन बार फेल हो जाने के बाद भी उन्होंने पढाई से अपना नाता नहीं तोड़ा। 

8. बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि - 

(क) छोटा भाई अपने भाईसाहब का आदर करता है।

निम्नलिखित बातों से पता चलता है कि छोटा भाई अपने भाईसाहब का आदर करता है-

·       छोटा भाई अपने बड़े भाईसाहब के डाँटने पर कभी पलटकर जवाब नहीं देते थे।

·       स्वयं के कक्षा में अव्वल आने पर और बड़े भाईसाहब के फेल होने पर भी उन्हें कभी खरी खोटी नहीं सुनाई।

·       खेलकूद इत्यादि सारे काम बड़े भाई से बचकर करता था और पकड़े जाने पर उसे अपनी गलती मानता था।  

(ख) भाईसाहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है।

भाईसाहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है। पाठ के अंतर्गत हमें यह तब पता चलता है जब कनकौए लूटते वक्त उन्होंने छोटे भाई को डाँट लगाई। उस डाँट में यह स्पष्ट झलकता था कि भले ही वे कक्षा में तीन बार फ़ेल क्यों न हुए हों पर उन्हें जिंदगी का अच्छा अनुभव है।

(ग) भाईसाहब के भीतर भी एक बच्चा है। (घ) भाईसाहब छोटे भाई का भला चाहते हैं। 

भाईसाहब के भीतर भी एक बच्चा है पाठ के अंतर्गत हमें यह तब पता चलता है जब कनकौया लूटते समय वे छोटे भाई से वे अपने मन के भावों को व्यक्त करते हैं और कहते हैं कि मेरा भी जी ललचाता है; लेकिन करूँ क्या,  खुद बेराह चलूँ, तो तुम्हारी रक्षा कैसे करूँ?

          और इसी बात से यह भी पता चलता है कि छोटे भाई के प्रति जो व्यवहार भाईसाहब किया करते थे वह उसका भला चाहने के कारण करते थे न कि ईर्ष्या व द्वेष के कारण। 

9. बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्‍यों महत्वपूर्ण कहा है? अथवा इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज नहीं, असल चीज है बुद्धि का विकास। आशय स्पष्ट कीजिए।

उपरोक्त पंक्ति का आशय यही है कि मात्र किताबी ज्ञान से जीवन नहीं जिया जा सकता जीवन जीने के लिए ज़िंदगी से मिलने वाले अनुभव ज्ञान की आवश्यकता होती है कुछ इसीतरह की बात कबीर ने भी अपने दोहे में लिखी है कि –

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भय न कोई।

एकै आषिर पीव का, पढ़े सो पंडित होई॥

10. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था। आशय स्पष्ट कीजिए।

उपरोक्त पंक्ति का आशय यही है कि जीव की रुचि जहाँ होती है उसका पुरुषार्थ उसी दिशा में कार्य करता है फिर चाहे कोई कितना ही उसे डाँटा-फटकारा जाए, उस पर डाँट-फटकार का कोई असर नहीं होता है।   

बुधवार, 30 अप्रैल 2025

मुहावरे (MUHAVARE)

मुहावरे

1.     वाक्य में जिस शब्द समूह का साधारण अर्थ न होकर विशेष अर्थ होता है, उसे मुहावरा कहते हैं।

2.     मुहावरे के अंत में धातु के साथ ना का प्रयोग अवश्य होता है।

3.     यह पूरा वाक्य नहीं बल्कि वाक्यांश होता है। जो अपने शाब्दिक अर्थ को छोड़कर किसी विशेष अर्थ का बोध कराता है। तथा इसका अर्थ प्रसंग के अनुसार होता है।

4.     मुहावरे का प्रयोग स्वतंत्र रूप से नहीं किया जाता, बल्कि यह वाक्य के बीच में प्रयुक्त होता है और वाक्य का अंग बन जाता है।

5.     मुहावरे का जब वाक्य में प्रयोग किया जाता है, तो उसकी क्रिया, लिंग, वचन, कारक आदि प्रसंग के अनुसार बदल जाते हैं।

पद्य-भाग

कबीर-साखी

1.     आपा खोना (अहंकार नष्ट करना) - भक्ति और अहंकार साथ-साथ नहीं चल सकते। ईश्वर को पाने के लिए आपा खोना ही पड़ता है।

2.     आपा खोना (गुस्सा आना/संतुलन खोना) – राम का अपमान होता देख लक्ष्मण अपना आपा खो बैठे।

3.  अँधियारा मिटना (अज्ञान समाप्त होना) - महात्मा जी के अमृत वचन सुनकर मेरे सामने छाया सब अँधियारा मिट गया।

4.    मंत्र लगना (उपाय काम आना) - पिता ने विवेकानंद को सांसारिक मार्ग पर चलाने के सारे उपाय किए, किंतु कोई भी मंत्र न लग सका।

5.     बौराना (पागल होना) – लक्ष्मण की मृत्यु की खबर सुनकर राम बौरा गए।

6.   घर जलाना (घर का मोह छोड़ना) - देशभक्ति के मार्ग पर चलने वाले क्रांतिकारियों को पहले अपना घर जलाना पड़ता है।

मीरा-पद

    1.     लाज रखना (सम्मान की रक्षा करना) - इस बार ओलंपिक में एक स्वर्ण जीतकर हमारे निशानेबाज ने भारत की लाज रख ली। 

मैथिलीशरण गुप्त-मनुष्यता

1.     बाहू बढ़ाना (सहायता करना) - परमात्मा हर दुखी को उबारने के लिए बाहू बढ़ाता है।

2.     विपत्ति ढकेलना (संकटों को दूर करना) - जुझारू लोग अपने सामने आई हर विपत्ति को ढकेलकर आगे बढ़ जाते हैं। 

वीरेन डंगवाल-तोप

    1.     मुँह बंद होना (चुप होना, शांत होना)- जिस दिन से वह चोरी करता पकड़ा गया है, उसका मुँह बंद हो गया।

कैफ़ी आज़मी-कर चले हम फ़िदा

1.     सिर झुकना (परास्त होना)- पाकिस्तान-भारत के बीच चार युद्ध हुए हैं। सभी में पाकिस्तान का सिर झुका है।

2.     मौत से गले मिलना (सहर्ष बलिदान देना)- इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा ने आतंकवादियों के ठिकाने पर सीधे आक्रमण किया और मौत से गले मिल गया।

3.   सिर पर कफ़न बाँधना (बलिदान के लिए तैयार होना)- जो बहादुर कुछ कर गुजरना चाहते हैं, वे सिर पर कफन बाँधकर कर्म किया करते हैं।

4.    हाथ तोड़ना (करारा जवाब देना, युद्ध का जवाब करारे युद्ध से देना) - जो भी तुम्हारे विरुद्ध हाथ उठाए, तुम उसके हाथ तोड़ दो।

5.     हाथ उठना (आक्रमण होना)- इससे पहले कि शत्रु का हाथ तुम्हारी ओर उठे, तुम उसे करारा जवाब दो। 

गद्य-भाग

प्रेमचंद-बड़े भाई साहब

1.     मिसाल होना (आदर्श होना)- डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम नयी पीढ़ी के लिए मिसाल हैं।

2.   छोटा मुँह बड़ी बात (हैसियत से बढ़चढ़ कर बोलना)- उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह बड़ी बात थी।  

3.     प्राण सूखना (डर लगना)- सामने शेर को दहाड़ता देखकर मेरे प्राण सूख गए।

4.     पहाड़ होना (बड़ी मुसीबत होना)- मंच पर खड़े होकर दो घंटे बोलना मेरे लिए पहाड़ था।

5.     हँसी-खेल होना (छोटी-मोटी बातें)- पूरे बोर्ड में प्रथम आना कोई हँसी-खेल नहीं है।

6.  ऐरा-गैरा-नत्थू-खैरा होना (महत्वहीन व्यक्ति होना)- ऐरा-गैरा-नत्थू-खैरा, यूँ कोई भी वैज्ञानिक नहीं बन जाता। 

7.     आँख फोड़ना ( बड़े ध्यान से पढ़ना)- मैंने रात भर पढ़कर आँखें फोड़ी और इधर परीक्षा स्थगित हो गई।

8.     खून जलाना (कष्ट उठाना)- माता-पिता अपनी संतान को सुख-सुविधा देने के लिए दिन-रात खून जलाते हैं।

9.     घोंघा होना (मूर्ख होना)- घोंघा होकर रहने से सफलता प्राप्त नहीं होगी।

10. आँसू बहाना (रोना)- वर्ल्ड कप से बाहर होने पर पाकिस्तान आँसू बहाने लगी।

11. पास फटकना (नजदीक जाना)- प्राचार्य महोदय का रौबदाब इतना था कि कोई उनके पास तक नहीं फटक पाता था।

12. गाढ़ी कमाई (मेहनत की कमाई)- कोई भी मनुष्य अपनी गाढ़ी कमाई को यूँ ही नहीं उड़ा सकता।

13. लगती बात कहना (चुभती हुई बात कहना)- बड़े भाई साहब ऐसी-ऐसी लगती बात कहते थे कि मन विचलित हो उठता था।

14. सूक्ति बाण चलना (व्यंग्यपूर्ण चुभती बातें कहना)- बड़े भाई साहब ऐसे-ऐसे सूक्ति बाण चलते कि मन उदास हो जाता।

15. बूते के बाहर होना (सामर्थ्य के बाहर होना)- राजनीति मेरे बूते के बाहर है।

16.निराशा के बादल फटना (निराशाजन्य दुख समाप्त होना)- कोरोना के जाने के बाद लोगों के जीवन से निराशा के बादल फट गए।

17. जिगर के टुकड़े-टुकड़े होना (दिल पर भारी आघात लगना)- बम धमाकों में अपने पुत्र की मौत देखकर माँ का जिगर टुकड़े-टुकड़े हो गया।

18. हिम्मत टूटना (साहस समाप्त होना)- बच्चे की मृत्यु का समाचार सुनकर पिता की हिम्मत टूट गई।

19. जान तोड़ मेहनत करना (खूब परिश्रम करना)- खेलों में प्रथभ आने के लिए लड़के जान तोड़ मेहनत करते हैं।

20. हाथ डालना (काम शुरू करना)- वह बेचारा जिस भी काम में हाथ डात्नता है, उसी में घाटा होता है।

21. नक्शा बनाना (योजना बनाना)- मैंने रात भर कल्र के कार्यक्रम के नक्शे बनाए। पर तुमने पत्र-भर में कार्यक्रम समाप्त कर दिया।

22. उड़ जाना (समाप्त होना)- भाई भोजन के सामान में से खीर कहाँ उड़ गई ?

23. अमल करना (बताए अनुसार चलना)- हमें अपने गुरु की बात पर अमल करना चाहिए।

24. दबे पाँव आना (चोरी-चोरी आना)- रात को बिल्ली ऐसे दबे पाँव आई कि मुझे उसके आने का पता ही नहीं चला।

25. साये से भागना (नाम से ही डरना)- आजकल सख्ती इतनी है कि सभी कर्मचारी बॉस के साये से ही भागते हैं।

26. प्राण निकलना ( भयभीत होना)- वार्षिक परीक्षा का नाम सुनकर नालायक छात्रों के प्राण निकल जाते हैं।

27. सिर पर नंगी तलवार लटकना (भयभीत रहना)- परीक्षा में गणित का विषय मेरे लिए सिर पर नंगी तलवार लटकने के बराबर है।

28. घुड़कियाँ खाना (डॉट-डपट सहना)- भाई साहब! आप प्यार से समझाया करो। आपकी घुडकियाँ खाना मेरे वश में नहीं है।

29. आड़े हाथों लेना (खिंचाई करना, कठोरतापूर्ण व्यवहार करना)- बम धमाकों में सरकार की ढिल्राई देखकर मीडिया वालों ने मुख्यमंत्री को आड़े हाथों लिया।

30. घोर तपस्या करना (कठिन परिश्रम करना)- भारत को वर्ल्ड कप जीतने के लिए घोर तपस्या करनी पड़ेगी।

31. घाव पर नमक छिड़कना (दुखी को और दुखी करना)- गृहमंत्री की मक्कारी-भरी बातों ने धमाकों से सहमे लोगों के घावों पर नमक छिड़क दिया।

32. खून जलाना (बहुत मेहनत करना)- माता-पिता अपना खून जलाकर पैसे कमाते हैं और बेटा उनसे मौज उड़ाता है।

33. तीर मारना (बड़ी सफलता पाना)- आस्ट्रेलिया को एक बार हराकर भारतीय क्रिकेट टीम ऐसे खुश थी मानो उसने कोई तीर मार लिया हो।

34. हेकड़ी जताना (घमंड दिखाना)- स्वयं को ऊँचा समझने वाले लोग हेकड़ी जताने से बाज नहीं आते।

35. तलवार खींचना (लड़ाई के लिए तैयार रहना)- वह स्वभाव से इतना उग्र है कि बात-बात पर तलवार खींच लेता है।

36. टूट पड़ना (तेजी से झपटना)- जैसे ही भोजन शुरू हुआ, पूरी बरात खाने पर टूट पड़ी।

37. दिमाग होना (घमंड होना)- जब से उसने स्कूल में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, उसे दिमाग हो गया है।

38. नाम निशान मिटाना (सब कुछ नष्ट करना)- भारत की सरकार को चाहिए कि वह आतंकवादियों का नाम निशान मिटा डाले।

39. चुल्लू भर पानी देने वाला (कठिन समय में साथ देने वाला)- जो लोग दुनिया के साथ बुरा व्यवहार करते हैं, अंत में उन्हें कोई चुल्लू भर पानी देने वाला भी नहीं मिलता।

40. दीन-दुनिया से जाना (कहीं का न रहना)- अगर तुम इस तरह बेईमानी करते रहे तो नौकरी के साथ-साथ दीन-दुनिया से भी जाओगे।

41. सिर फिरना (घमंड होना)- जब से उसकी जमीन बिकी है और घर में पैसा आया है, उसका सिर फिर गया है।

42. अंधे के हाथ बटेर लगना (अयोग्य को कोई महत्त्वपूर्ण वस्तु मिलना)- उस अनपढ़ को इंजीनियर पत्नी क्या मिली, अंधे के हाथ बटेर लग गया।

43. हाथ लगना (प्राप्त होना)- बड़ी मुश्किल से नौकरी हाथ लगी है, इसे सँभालकर रखना।

44. अंधा-चोट निशाना पड़ना (अचानक ही कोई चीज़ मिलना)- प्रतियोगिता में प्रथम आया देख उसे बुद्धिमान न मान बैठना। बस कभी-कभी अंधा-चोट निशाना पड़ जाता है।

45. दाँतों पसीना आना (बहुत अधिक परेशानी उठाना)- शादी-ब्याह में इतने अधिक काम थे कि उन्हें निपटाते-निपटाते दाँतों पसीना आ गया।

46. लोहे के चने चबाना (बहुत कठिनाई उठाना)- एवरेस्ट चोटी पर चढ़ाई करना लोहे के चने चबाना है।

47. आँधी रोग हो जाना (कुछ न समझ आना)- विज्ञान का परीक्षा पत्र देख मुझे आँधी रोग हो गया था।

48. चक्कर खाना (भ्रम में पड़ना)- उसकी ऊटपटाँग बातें सुनकर मैं चक्कर खा गया।

49. बे-सिर-पैर की बातें (बेकार की ऊटपटाँग बातें)- उसकी बे-सिर-पैर की बातें सुनते-सुनते मेरा माथा भन्ना गया।

50. राह लेना (पीछा छोड़ना, चले जाना)- कोई काम हो तो रुको, वरना राह लो।

51. पन्‍ने रँगना (बेकार में लिखना)- अच्छे विद्यार्थी थोड़ा किंतु ठीक लिखते हैं। वे व्यर्थ में पन्ने नहीं रँगते।

52. पापड़ बेलना (कठिन काम करना)- सफलता पानी है तो सब प्रकार के पापड़ बेलने को तैयार रहो।

53. आटे-दाल का भाव मालूम होना (कठिनाई का सामना करना)- कभी नौकरी ढूँढने निकला तो तभी तुम्हें आटे-दाल का भाव मालूम होगा।

54. ज़मीन पर पाँव न रखना ( बहुत खुश होना) -जिस दिन मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, उस दिन मैं पाँव जमीन पर नहीं रख पा रहा था।

55. गिरह बाँधना (अच्छी तरह मन में बिठाना)- आज यह बात गिरह बाँध लो कि आतंकवाद को कुचले बिना देश में शांति नहीं हो सकती।

56. प्राण ले लेना (मार डालना)- अब तक आतंकवादी बहुत बेकसूर लोगों के प्राण ले चुके हैं।

57. हाथ से न जाना (चूकना)- यह सुनहरा मौका हाथ से न जाने देना।

58. चोरों का सा जीवन होना (छुपकर रहना)- रॉ एजेट्स चोरों का सा जीवन जीते हैं।

59. शब्द चाटना (अच्छी तरह पढ़ना)- मुझे प्रथम आने का शौक इतना था कि मैं पुस्तक का एक-एक शब्द चाट जाता था।

60. मुद्रा कांतिहीन होना (चहरा मुरझा जाना)- परीक्षा में नकल करते समय ज्यों ही गुरु जी सामने आए मेरी मुद्रा कांतिहीन हो गयी।

61. स्वच्छंद होना (मनमर्जी करना)- मम्मी-पापा के जाते ही मैं स्वच्छंद हो गया।

62. मुठभेड़ होना (सामना होना, कलह होना)- मेरी उससे मुठभेड़ हुई तो मैं उसे नाकों चने चबवा दूँगा।

63. हाथ-पाँव फूल जाना (परेशानी देखकर घबरा जाना)- गुंडों के हाथों में बंदूके देखकर उसके हाथ-पाँव फूल गए।

64. पैसे-पैसे को मुहताज होना (बहुत गरीब और मजबूर होना)- अजय की कंपनी डूब गई तो उसका परिवार पैसे-पैसे का मुहताज हो गया।

65. मुँह चुराना (शर्म के मारे बचना)- उधार लेने के बाद प्रायः उधार लेने वात्रा अपने ऋणदाता से मुँह चुराने लगता है।

66. हाथों में लेना (काम का जिम्मा लेना)- जब से मैंने यह धंधा हाथों में त्रिया है, मेरी चाँदी हो गई है।

67. बेराह चलना (गलत काम करना)- माता-पिता बच्चों पर इसलिए निगरानी रखते हैं कि कहीं वे बेराह न चलें।

68. ज़हर लगना (बहुत बुरा ल्गना)- डाँट खाने वाले बच्चे को डॉट का एक-एक शब्द जहर लगता है।

69. नतमस्तक होना (सिर झुकाकर मानना)- लेखक बड़े भाई की एक-एक तरकीब के सामने नतमस्तक हो जाता था।

70. जी ललचाना (मन में लालच आना)- क्या करूँ, इतनी सारी मिठाइयाँ देखकर मेरा जी ललचा उठता है।

डायरी का एक पन्‍ना-सीताराम सेकसरिया

1.     अलख जगाना (अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करना)- अनुत्तीर्ण होने पर पुनः पढ़ने के लिए मेरे पिताजी ने ही मेरे अंदर अलख जगाई।

2.     रंग दिखाना (प्रभाव या स्वरूप दिखाना)- तुम इसे इतना सीधा न समझो। ऐन मौके पर तुम्हें यह ऐसा रंग दिखाएगा कि इसे भूल नहीं पाओगे।

3.     आंखे मिंचना (आंखे बंद हो जाना या मारना)- उस सड़क हादसे को देखकर मेरी तो आँखें ही मिंच गयी।

4.     ठंडा पड़ना (ढीला पड़ना)- पता नहीं, भारत सरकार आतंकवादियों को कुचलने के मामले में ठंडी क्‍यों पड़ जाती है।

5.     टूट जाना (बिखर जाना)- मृत्यु के साथ मनुष्य के सारे सपने टूट जाते हैं।

6.     चोट खाना (गहरा दुख उठाना या मार सहना)- कुछ लोग जीवन में चोट खाकर ही सीखते हैं।

7.     ज़ुल्म ढाना (अत्याचार करना)-अंग्रेजों ने भारतीय जनता पर अनगिनत ज़ुल्म ढाए।

तताँरा-वामीरों कथा-लीलाधर मंडलोई

1.     सुध-बुध खोना (अपने वश में न रहना)- वामीरो की सुंदरता को देखकर तताँरा सुध-बुध खो बैठा।

2.     बाट जोहना (प्रतीक्षा करना)- भारतवासी ऐसी सरकार की बाट जोह रहे हैं जो आतंकवाद को कुचल कर रख दे।

3.     आँखों में तैरना (मन में प्रकट होना)- एकांत क्षणों में सारी बीती बातें आँखों में तैरने लगती हैं।

4.  खुशी का ठिकाना न रहना (बहुत अधिक खुशी होना)- 20-20 क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीतने पर देशवासियों की खुशी का ठिकाना न रहा।

5.   आग-बबूला होना (बहुत क्रोध में आना)- बच्चों की नारेबाजी सुनकर प्राचार्य महोदय आग बबूला हो गए।

6.   राह न सूझना (उपाय न मिलना)- चारों ओर आग से घिर जाने पर मैं ऐसा घबराया कि मुझे कोई राह न सूझी।

7.   सुराग न मिलना (पता न मिलना)- यह तो मोदी सरकार ही थी जिसने आतंकवादियों को कुछ ही दिनों में पकड़ लिया। वरना शेष सरकारों को तो बरसों तक आतंकवादियों के सुराग भी नहीं मित्ते।

8.     आवाज़ उठाना (विरोध करना)- हमें अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए।

9.   एक-एक पल पहाड़ होना-(प्रतीक्षा का समय मुश्किल से बीतना)-विदेश से अपने पुत्र के आने की खबर सुनने के बाद माँ के लिए एक-एक पत्र पहाड़ हो रहा था।

10. एकटक निहारना (देखते ही रह जाना)- विदेशी पर्यटक ताजमहल को एकटक निहारते रहे।

11. अपना राग अलापना (अपनी ही बात कहना)- अपने अहंकार में चूर रावण ने किसी की बात नहीं सुनी,वह अपना राग अल्लापता रहा ।

12. होश आना (सोचने समझने योग्य होना)- जब हॉस्टल जाकर घर से दूर रहना पड़ा तब मुझे होश आया।

13. चेतना लुप्त होना (सोचने समझने योग्य न रहना)- खेलकूद देखकर मेरी पढ़ाई के प्रति चेतना लुप्त हो जाती है।

14. बेचैन होना (व्याकुल होना या छटपटना)- पापा के जाने के बाद मैं बेचैन हो गया।

15. इधर-उधर दृष्टि दौड़ाना (सतर्क रहना)- चोरी करते समय चोर इधर-उधर दृष्टि दौड़ाता रहता है।

16. फूट-फूटकर रोना (बहुत दुख के साथ रोना)- मम्मी कि तबियत खराब होने पर दीदी फूट-फूटकर रोयी थी।

17. किंकर्तव्य विमूढ़ होना (कुछ समझ न आना)- अपने घर पर पुलिस को देखकर एक बार के लिए मैं किंकर्तव्य विमूढ़ हो गया था।

18. हवा की तरह बहना (परिस्थिति के अनुसार चलना या खबर का फैलना)- हमारे घर में नयी कार आने की खबर मुहल्ले में हवा की तरह बह गयी।

तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

1.     आँखों से बोलना (संकेत करना)- गुरु जी का गुस्सा आँखों से बोलता है।

2.     आँखों से बात करना (संकेत में समझना-समझाना)- मैदान में खिलाड़ी आँखों से बात कर लेते हैं।

3.     दो से चार बनाना (लाभ होना)- रोहन तो दो से चार बनाने की कला में पारंगत है।

4.    मील का पत्थर होना (प्रभावशाली होना)- विराट कोहली इस बल्लेबाज़ी में सबके लिए मील का पत्थर है।

5.     तराज़ू पर तौलना (मूल्य आँकना)- कुछ लोग अपनी हर बात तराज़ू पर तौल कर बोलते हैं।

6.   सातवें आसमान पर होना (बुलंदी या बहुत ऊँचाई पर होना)- भारतीय टीम इस समय क्रिकेट के सातवें आसमान पर है।

7.    दिल की ज़ुबान समझना (बिना शब्दों के मन का भाव समझ जाना)- माँ अक्सर मेरी दिल की ज़ुबान समझ लेती है।

8.  हावी होना (प्रतिपक्षी के खिलाफ मजबूत स्थिति में होना)- भारतीय टीम सेमी फ़ाइनल में न्यूज़ीलेंड पर हवी रही।

9. कोसों दूर होना (किसी का सामना न कर पाना या बहुत दूर रहना)- मैक्सवेल के आउट होने के बाद आस्ट्रेलिया टीम जीत से कोसों दूर हो गयी। 

अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले-निदा फ़ाज़ली

1.     बेघर होना (कोई ठिकाना न होना)- युद्ध के बाद अनेक लोग बेघर हो जाते हैं।

2.   दीवार खड़ी करना (बाधा उत्पन्न करना)- मित्र है या शत्रु? जहाँ भी जाता है, वहीं मेरे सामने दीवार खड़ी कर देता है।

3.    डेरा डालना (स्थायी रूप से रहना)- ये अपराधी यूँ ही पकड़ में नहीं आते। महीनों इनकी राह में डेरा डाले बैठना पड़ता है।

4.    मारे-मारे फिरना (परेशान रहना)- राम और उसका भाई कई साल्रों से नौकरी के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं, परंतु अभी तक उन्हें नौकरी नहीं मिली।

5.     दुख बाँटना (मदद करना)- मनुष्य को मनुष्य का दुख बाँटना चाहिए। 

पतझर में टूटी पत्तियाँ-रवीन्द्र केलेकर

1.    हवा में उड़ना (थोथी बातें करना, ऊपरी बातें करना,यथार्थ से दूर होना)- उसकी बातों पर न जाना। उसे हवा में उड़ने की आदत है।

2.     आगे आना (सामने आना)- मुसीबत के समय आगे आने वाला ही सच्चा मित्र कहलाता है।

3.     कदम उठाना (किसी काम को करने की तैयारी करना)- निरंतर अभ्यास करने वाला व्यक्ति ही सफलता की ओर कदम उठा पता है। 

कारतूस-हबीब तनवीर

1.     तंग आना (परेशान होना)- परेशानियों से तंग नहीं आना चाहिए।

2.    आँखों में धूल झोंकना (धोखा देना)- इस बार पुलिस की आँखों में धूल्न झोंकने के लिए आतंकवादियों ने स्कूली बैग में बम रखवाए।

3.     हाथ न आना (पकड़ा न जाना)- पता नहीं, हमारी पुलिस क्‍या करती रहती है। आतंकवादी वारदात करके खिसक जाते हैं, वे कभी हाथ नहीं आते।

4.    हाथ से निकाल जाना (मिली हुयी वस्तु हाथ से छिन जाना)- विराट कोहली के आउट होने के बाद मैच हाथ से निकाल गया।

5.     मुट्ठी भर आदमी (थोड़े-से लोग)- आतंकवादी मुट्ठी भर भी हों तो भी जन-जीवन को थर्रा देते हैं।

6.     कूट-कूटकर भरना (भावना का बहुत अधिक प्रबल होना)- आतंकवादियों के मन में द्वेष की भावना
कूट-कूटकर भरी रहती है।

7.    काम तमाम करना (जान से मार डालना)- पुलिस इंस्पेक्टर शर्मा ने एक ही गोली में गुंडे का काम तमाम कर डाला।

8.     नज़र रखना (निगरानी करना)- गुप्तचर विभाग का काम यही है कि वह हर गतिविधि पर नजर रखे।

9.     जान बख्शी करना (जान छोड़ देना)- इस बार मैं तुम्हें जान बख्शी करता हूँ। फिर से मेरे रास्ते में न आना।

10. हक्‍का-बक्का रह जाना (हैरान होना)- महेंद्र सिंह धोनी की आतिशी पारी देखकर आस्ट्रेलिया के खिलाड़ी हक्के-बक्के रह गए।

11. बुरा-भला कहना (खरी-खोटी सुनाना)- वकील ने वज़ीर अली को बुरा-भला कहा।

12. सन्नाटे में होना (स्तंभित होना या सोच विचार में शून्य होना)- विराट कोहली के आउट होने पर स्टेडियम सन्नाटे में आ गया।

     13. पीछा करना (किसी के पीछे जाना)- फाइनल पर लक्ष्य का पीछा करना आसान नहीं होगा। 

हरिहर काका-मिथिलेश्वर

1.     सयाना होना (समझदार होना)- हरिहर काका अपने साथ घटी घटनाओं के बाद कुछ सयाने हो गए थे।

2.     विलीन होना (खो जाना)- तताँर वमीरों की आवाज़ में विलीन हो गया था।

3.     मझधार में फँसना (मुसीबत में फँसना)- सेनानी कभी अपने देश को मझधार में नहीं छोड़ता।

4.     चपेट में आना (संकट में फँसना)- लॉकडाउन होने पर भी घर से बाहर निकालकर लोग कोरोना की चपेट में आ रहे थे।

5.     सीख देना (नसीहत देना)- आजकल कोई भी किसी को भी सीख दे देता है।

6.     मौज करना (आनंद प्राप्त करना)- दीपावली पर लोग पटाखे फोड़कर मौज करते हैं।

7.     स्वार्थ साधना (अपना प्रयोजन पूरा करना)- महंत जी हरिहर के माध्यम से अपना स्वार्थ साध रहे थे।

8.     सिर आँखों उठाकर रखना (आदर के साथ रखना)- जायदाद के लालच में भाइयों की पत्नियों ने हरिहर को सिर आँखों उठाकर रखा।

9.     कुत्ते का सा जीवन होना (घोर दुर्दशा होना)- भाइयों के होते हुये भी हरिहर का जीवन कुत्ते का सा हो गया था।

10. टोह में रहना (मौके की तलाश में रहना)- महंतजी हरिहर से बात करने की टोह में थे।

11. मोर्चा सम्हालना (स्थिति या ज़िम्मेदारी सम्हालना)- जैसे ही भाई ठाकुरबारी पहुँचे तो महंत जी के आदमियों ने मोर्चा सम्हाल लिया।

12. आसमान से ज़मीन पर आना (उच्च स्थिति से निम्न स्थिति में आना)- महंत जी की असलियत जानकार हरिहर के मन में वे आसमान से ज़मीन पर उतर आए थे।

13. खून खौलना (क्रोधित होना)- महंत जी के यहाँ हरिहर की बुरी हालत देख भाइयों का खून खौल गया।

14. महटिया जाना (टाल जाना)- महंत जी की सच्चाई जानने के बाद हरिहर उन्हें महटियाने लगा।

15. चिकनी-चुपड़ी बातें बनाना (दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें कहना)- हरिहर काका को मनाने के लिए उनके भाई उनसे चिकनी-चुपड़ी बातें बनाने लगे।

16. खुलकर बातें करना (बिना संकोच बात कहना)- अब हरिहर काका खुलकर बातें नहीं कर पते थे।

17. चंपत हो जाना (गायब हो जाना)- पुलिस के आते ही भाई और रिश्तेदार चंपत हो गए।

18. जितने मुँह उतनी बातें (किसी बात का स्पष्टीकरण न होना)- हरिहर के संदर्भ में गाँव में जितने मुँह उतनी बातें थी।

19. तितर-बितर होना (बीखर जाना)- गोलियाँ चलने के बाद भाइयों के रिश्तेदार तितर-बितर हो गए।

20. मोह भंग होना (भ्रम या अज्ञान का नाश)- भाइयों का और महंत जी का असली चेहरा देखकर महंत जी का मोह भंग हो गया था।

21. रंग चढ़ना (प्रभावित होना)- पहली बार महंत जी की बात सुनकर हरिहर पर उनका रंग चढ़ने लगा।

22. बातें बनाना (बहाना बनाना)- महंत जी बातें बनाने में माहिर थे।

23. सहनशक्ति का जवाब देना (हिम्मत खत्म होना)- भाइयों के दुर्व्यवहार के बाद हरिहर की सहनशक्ति जवाब दे गयी थी।

24. कान खड़े होना (सावधान रहना)- भाइयों और महंत जी के कृत्यों के बाद हरिहर काका के कान खड़े हो गए थे।

25. फूटी आँख नहीं सुहाना (जरा भी अच्छा न लगना)- ये लाफ्टर चैनल पर आने वाले फूहड़ हँसौड़ मुझे फूटी आँख नहीं सुहाते।

26. आँख भर आना (आँसू आना)- इंस्पेक्टर शर्मा की विधवा को बिलखते देखकर सबकी आँख भर आई।

27. धमा-चौकड़ी मचाना (उपद्गरव करना) - आज ये लोग गाई की बजाय धमाचौकड़ी मचा रहे हैं- माजरा क्या है?

28. दिल पसीजना (दया का भाव जागना)- अनाथ बालक को रोते देखकर वहाँ खड़े सभी लोगों का दिल्ल पसीज गया।

29. तू-तू, मैं-मैं (झगड़ा होना)- मैं तो तुम्हें अंतरंग मित्र समझता था। तुम तो अभी से तू-तू, मैं-मैं पर उतर आए।

30. रंगे हाथ पकड़ना (गलती करते हुए पकड़ना)- पुलिस ने चोर को रंगे हाथ पकड़ा। फिर भी वह अगर-मगर करता रहा।

31. खून खौलना (क्रोध उफनना)- चोर को सफेद झूठ बोलते देखकर मेरा खून खौल उठा।

32. दूध की मक्खी (बेकार वस्तु, अनुपयोगी)- आजकल की नालायक संतानें अपने बूढे माता-पिता को दूध की मक्खी समझती हैं।

33. गिद्ध दृष्टि (बुरी नज़र)- पाकिस्तान कश्मीर पर सदा-से गिद्ध दृष्टि लगाए बैठा है।

34. फरार होना (भाग जाना)- चोर पुलिस को देखते ही फरार हो गया।

35. तूती बोलना (प्रभाव होना, दबदबा होना)- देश में आजकलत्र नरेंद्र मोदी की तूती बोल रही है।

36. मुँह खोलना (रहस्य बताना)-अगर मैंने अध्यापक के सामने मुँह खोल दिया तो सबको सज़ा मिल्रेगी।

37. गूँगेपन का शिकार होना (भयवश बोल न पाना)-हरिहर काका की स्थिति अच्छी नहीं थी,वह गूँगेपन का शिकार हो गए।

38. खोज-ख़बर लेना (जानकारी प्राप्त करना)- कहने को तीन भाई थे,परंतु किसी ने उनकी खोज-ख़बर नहीं ली।

39. तन-बदन में आग लगना (क्रोधित होना)- हरिहर काका पर अत्याचार होते देख लेखक के तन-बदन में आग लग गई।

40. कान खड़े होना (सचेत होना)- रात को बर्तन गिरने की आवाज़ें सुनकर हम सब के कान खड़े हो गए।

41. हाथ से निकलना (अवसर चूकना)- महंत किसी भी सूरत में ज़मीन हाथ से निकलने नहीं देना चाहता था।

42. भनक तक न लगना (आभास न होना)- चोरों की योजना की किसी को भनक तक न लगी।

43. जी-जान से जुटना (सख्त मेहनत करना)- रमेश अपनी योजना को कार्य रूप देने के लिए जी-जान से जुट गया।

44. पर्दाफ़ाश होना (भेद खुलना)- एक-न-एक दिन अपराधियों का पर्दाफ़ाश हो ही जाता है।

सपनों के-से दिन- गुरुदयाल सिंह

1.     तार-तार होना (बुरी तरह कट-फट जाना)- काँटों में उल्लकर उसके कपड़े तार-तार हो गए।

2.     तरस खाना (दया करना)- तेरी छोटी उम्र पर तरस खाकर छोड़ रहा हूँ, वरना ईंट-से-ईंट बजा देता।

3.     आँख बचाना (छिपाना)- मैंने आँख बचाने की बहुत कोशिश की किंतु उसके हत्थे चढ़ ही गया।

4.     ढाढ़स बँधाना (हिम्मत देना)- दिलेर पुलिस अधिकारी मोहनचंद्र शर्मा की विधवा को ढाढ़स बंधाने वालों का ताँता लगा हुआ था।

5.     हाय-हाय करना (अपने कष्टों का रोना रोना)- तुम तो थोड़ा-सा भी कष्ट नहीं सहते। जरा-सी आँच लगते ही हाय-हाय करने लगते हो।

6.     दिन गिनना (अधीर होना)- दीवाली कब आएगी-हम तो बस दिन गिन रहे हैं।

7.   सस्ता सौदा (आसान उपाय)- एम.बी.बी.एस. के लिए दूसरी बार प्रवेश-परीक्षा देने की बजाय डेंटल कॉलेज में दाखिला लेना सस्ता सौदा है।

8.    खाल खींचना (बुरी तरह पीड़ा पहुँचाना)- मास्टर जी ने धमकाते हुए कहा कि मैं काम न करने वालों की खाल खींच लूँगा।

9.     चमड़ी उधेड़ना (बुरी तरह पेश आना)- अगर तुम गुंडागर्दी से बाज न आए तो चमड़ी उधेड़ दूँगा।

10. छाती धक-धक करना (हैभयभीत होना)-गणित की परीक्षा के नाम से मेरी छाती धक-धक करने लगती है।

11. खिल उठना (प्रसन्न होना)- खेल का कालांश आते ही सब बच्चों के चहरे खिल उठे।

12. आँख मूंदना (अनदेखी करना या ध्यान न देना)- लोग आजकल आँख मूंदकर गाड़ी चलाते हैं। 

टोपी शुक्ला-राही मासूम रजा

1.     दिल फड़कना (बेचैन होना)- बेटी की शादी के दिन नज़दीक आते ही माँ का दिल्र फड़कने लगा।

2.     दिल मसोसकर रहना (इच्छा को मन में दबा कर रहना)- मैं डॉ बनना चाहती थी, लेकिन पैसों की तंगी के कारण मन मसोसकर रह गई।

3.     बरस पड़ना (एकदम से क्रोधित हो जाना)- देर रात घर लौटे पुत्र को देखकर पिता उस पर बरस पड़े।

4.     मुँह न लगाना (प्यार न करना)- बुजुर्गों का अपमान करने वाले लोगों को कोई मुँह नहीं लगाता।

5.     ज़ुल्म ढाना (अत्याचार करना)-अंग्रेजों ने भारतियों पर बहुत ज़ुल्म ढाए थे।

6.     आत्मा में उतरना (गहराई में उतरना)- लाल बहादुर शास्त्री जी की सादगी सभी की आत्मा में उतर गई थी।

7.     स्वर्ग सिधारना (मृत्यु होना)- राम की दादी स्वर्ग सिधार गई।

8.     आसमान सिर पर उठाना (अत्यधिक हल्ला करना)- नानी के घर बच्चों ने घर सिर पर उठा लिया।

9.     एक टाँग पर खड़े होना (बहुत मेहनत या भक्ति करना)- इफ़्फ़न को चेचक होने पर उसकी दादी ने एक टाँग पर खड़े होकर भगवान से प्रार्थना की।

10. गीली मिट्टी का लौंदा होना (बहुत सीधा होना)- टोपी को सही-गलत की समझ नहीं थी क्योंकि वह गीली मिट्टी का लौंदा था।

11. चक्कर में पड़ना (झमेले में फसना)- लालच में आकार हम पुलिस के चाकर में पद गए।

12. ज़बान की नोंक पर उठाना (काम में दोष निकालना)- वर्ल्ड कप फाइनल मैच हारने के बाद टीम इंडिया सबकी ज़बान की नोंक पर है।

13. प्यास बुझाना (इच्छा पूरी करना)- टीम इंडिया यदि वर्ल्ड कप फाइनल मैच जीतती तो देशवासियों की प्यास बुझ जाती।

14. लाली दौड़ना (शर्मा जाना)-

15. होश ठिकाने आना (वस्तुस्थिति ज्ञात होना)- जब मैं परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुआ तब मेरे होश ठिकाने आए।

16. सिर पर खड़ा होना (निगरानी करना)- परीक्षा में वीक्षक सिर पर ही खड़े हो गए।

17. कसम खाना (प्रतिज्ञा करना)-वीर जवानों ने देश की रक्षा की कसम खाई है।

18. बिलबिला उठना (बेचैन होना)- घर में छिपकली देखकर दीदी बिलबिला उठी।

19. पल्लू में चले जाना (सहारा लेना)- टोपी घर में काम करने वाली बाई के पल्लू में चला गया।

20. गुस्सा पी जाना (गुस्सा आने पर भी गुस्सा न करना)- मोटा ग्राहक देखकर लाला जी ने अपना गुस्सा पी गए।

21. गाँठ बाँधना (याद रखना)- मोहन ने पिताजी की बात गाँठ बाँध ली।

   22. बात बिगाड़ना (काम खराब करना)- ट्रेविस हेड ने टीम इंडिया की बात बिगाड़ दी।