रविवार, 3 अगस्त 2025

पर्वत प्रदेश में पावस - सुमित्रानंदन पंत

 

पर्वत प्रदेश में पावस 

- सुमित्रानंदन पंत

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

1. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति प्रतिपल नया वेश ग्रहण करती दिखाई देती है। इस ऋतु में प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन आते हैं -

·       पर्वत पर असंख्य फूल खिल जाते हैं।

·       जिस तालाब में पर्वत अपना महकार देखता था जब उस तालाब से घना कोहरा उठता है तब ऐसा प्रतीत होता है कि मानों तालाब जल गया है।

·       पर्वतों से बहते हुए झरने मोतियों की लड़ियों से प्रतीत होते है।

·       पर्वत पर वृक्ष इतने ऊँचे हो जाते है कि मानों आकाश की ओर एकटक देख रहे हों।

·       सघन बादलों के छा जाने से पर्वत अदृश्य हो जाता है मानों कि वे पर्वत बादल के पंख लगाकर कहीं उड़ गए हों

·       आकाश में तेजी से इधर-उधर विचरते हुए बादल, अत्यंत आकर्षक लगते हैं।

2. 'मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्‍यों किया है?

उत्तर- 'मेखलाकार' शब्द का अर्थ है - 'करधनी' के आकार के समान। यह कमर वाले भाग में पहनी जाती है। कवि ने इस शब्द का प्रयोग पर्वत की विशालता दिखाने और प्रकृति के सौंदर्य को बढ़ाने के लिए किया है।

3. 'सहस्र दृग-सुमन' से क्‍या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?

उत्तर- कवि ने इस पद का प्रयोग सजीव चित्रण करने के लिए किया है। 'सहस्र दृग-सुमन' का अर्थ है - हजारों पुष्प रूपी आँखें। कवि ने इसका प्रयोग वर्षाकाल में पर्वत पर खिलने वाले फूलों के लिए किया है। कवि इन पुष्पों में पर्वत की आँखों की कल्पना कर रहा है। और मानों पर्वत अपने इन सुंदर नेत्रों से स्वयं का महा आकार नीचे जल में निहार रहा है।

4. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्‍यों?

उत्तर: कवि ने तालाब की तुलना दर्पण से की है क्‍योंकि तालाब का जल अत्यंत स्वच्छ व निर्मल है। क्योंकि दोनों ही प्रतिबिंब दिखाने में सक्षम है। जैसे तालाब के जल में पर्वत और उस पर लगे हुए फूलों का प्रतिबिंब स्वच्छ दिखाई दे रहा था।

5. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्‍यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?

उत्तर- पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर अपनी उच्चाकांक्षाओं के कारण देख रहे थे। वे बिल्कुल मौन रहकर स्थिर रहकर भी संदेश देते प्रतीत होते हैं कि उद्देश्य को पाने के लिए अपनी दृष्टि स्थिर करनी चाहिए क्योकि आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए शांत मन तथा एकाग्रता की आवश्यक है।

6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्‍यों धँस गए?

उत्तर- कवि के अनुसार वर्षा इतनी तेज और मूसलाधार थी कि ऐसा लगता था मानो आकाश धरती पर टूट पड़ा हो। चारों ओर धुंध छा जाता है, पर्वत, झरने आदि सब अदृश्य हो जाते हैं। ऐसा लगता है मानो तालाब में आग लग गई हो। चारों तरफ धुआँ-सा उठता प्रतीत होता है। वर्षा के ऐसे भयंकर रूप को देखकर उच्च-आकांक्षाओं से युक्त विशाल शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धसे हुए प्रतीत होते हैं।

7. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

उत्तर- झरने पर्वतों की उच्चता और महानता के गौरव का गान कर रहे हैं। कवि ने बहते हर झरनों की तुलना मोतियों की लड़ियों से की है।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -

1. है टूट पड़ा भू पर अंबर

उत्तर- जिसतरह कोई क्षुधा व्याधि से पीढ़ित व्यक्ति भोजन कि थाली पर टूट पड़ता है तो थोड़ी ही देर में थाली से भोजन गायब हो जाता है वैसे ही वर्षा इतनी तेज और मूसलाधार है कि ऐसा लगता है मानो आकाश धरती पर टूट पड़ा हो। सारे पर्वत को बादलों से ढक दिया हो। अतः अब पर्वत बिल्कुल भी दिखाई नहीं दे रहे। इसलिए अब पर्वत पर स्थित झरना भी नहीं दिखता बस झरने का शोर ही शेष रह गया है।

2. यों जलद-यान में विचर-विचर

    था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

उत्तर- इसका भाव है कि पर्वतीय प्रदेश में वर्षा के समय में क्षण-क्षण होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों तथा अलौकिक दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो वर्षा का देवता इंद्र बादल रूपी यान पर बैठकर जादू का खेल दिखा रहा हो। जिसकारण आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देखकर ऐसा लगता कि मानों बड़े-बड़े पहाड़ अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए उड़ रहे हों। बादलों का उड़ना, चारों और धुआँ होना और मूसलाधार वर्षा का होना ये सब जादू के खेल के समान दिखाई देते हैं।

3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर

    उच्चाकांक्षाओं से तरुवर

    हैं झाँक रहे नीरव नभ पर

    अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उत्तर- इसका भाव है कि वृक्ष भी पर्वत के हृदय से उठ-उठकर ऊँची आकांक्षाओं के समान शांत आकाश की ओर देख रहे हैं। इसके हम अनेक दृष्टियों से देख सकते हैं।

1.     वे आकाश की ओर स्थिर दृष्टि से देखते हुए यह प्रतिबिंबित करते हैं कि वे आकाश की ऊँचाइयों को चाहते हैं। और इसके लिए अपनी दृष्टि स्थिर करके चुपचाप मौन रहकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहते हैं।

2.     पर यदि आकाश की ऊँचाइयों से नीचे देखें तो स्वयं का आधार जिस पर वृक्ष स्थित है ऐसा पर्वत भी अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा है अतः उन्हें चिंता होती है कि अब वे पुनः कहाँ जाएँगे?

3.     दूसरों के बीच ताक-झांक करने वाले स्वयं का नुकसान कर बैठते हैं अतः हमने अपने ऊपर ज्यादा ध्यान देना चाहिए न कि दूसरों के ऊपर।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें