रविवार, 3 अगस्त 2025

पतझर में टूटी पत्तियाँ - रवीन्द्र केलेकर

 

पतझर में टूटी पत्तियाँ

- रवीन्द्र केलेकर

1. गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।

उत्तर- गाँधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। उन्होंने सत्य और अहिंसा को अपने आदर्शों का हथियार बनाया। और फिर भारत छोड़ो, सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, दांडीमार्च आदि सभी आन्दोलनों को व्यावहारिकता के स्तर पर शुरु किया और उन्हें सत्य और अहिंसा के आदर्शों के स्तर तक ले गए। जिसकारण उनके नेतृत्व में लाखों भारतीयों ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलकर संघर्ष किया।

2. आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- सत्य, अहिंसा, परोपकार, ईमानदारी सहिष्णुता आदि मूल्य शाश्वत मूल्य हैं। वर्तमान समय में भी इनकी प्रासंगिकता बनी हुई है क्योंकि आज भी सत्य, और अहिंसा के बिना राष्ट्र का कल्याण और उन्नति नहीं हो सकती है। शांतिपूर्ण जीवन बिताने के लिए परोपकार, त्याग, एकता, भाईचारा तथा देश-प्रेम की भावना का होना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम आज भी परोपकार और ईमानदारी के मार्ग पर चले तो समाज को अलगाव से बचाया जा सकता है।

3. समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।

उत्तर- इस पंक्ति का आशय यह है कि आदर्शवादी लोग समाज में आदर्श एवं मूल्यों की स्थापना करते हैं। जब समाज एक आदर्श स्थापित करता है और जो सबके हित में सर्वमान्य हो जाता है तो वही आदर्श मूल्य बन जाता है। जबकि व्यवहारिकता सिर्फ स्वहित देखती है सर्वहित नहीं।

4. जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब 'प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों' के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।

उत्तर- इस पंक्ति का आशय यह है कि व्यावहारिक आदर्शवाद में यदि संतुलन न रखा जाय तो व्यावहारिकता का बखान होने पर वह आदर्शों को गौण करने लगते हैं और व्यावहारिकता को प्रमुखता देने लगते हैं और तब आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी होने लगती है।

5. लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्‍यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है। उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि हम अक्सर या तो गुजरे हुए दिनों की बातों में उलझे रहते हैं या भविष्य के सपने देखते हैं। इस तरह हम मात्र भूत और भविष्य की कल्पनाओं में ही खो जाते हैं जबकि हमारे पास कुछ कर गुजरने का मौका वर्तमान में है। इसलिए कहा गया है कि भूत को भूलो, वर्तमान सुधारो, भविष्य अपने आप सुधार जाएगा।

6. हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अके ले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार कड़ ते रहते हैं।

उत्तर- इस पंक्ति का आशय यह है कि जापान के लोगों के जीवन की गति इतनी तीव्र हो गई है कि यहाँ लोग सामान्य जीवन जीने की बजाए असामान्य होते जा रहे हैं। जीवन की भाग-दौड़, व्यस्तता तथा आगे निकलने की होड़ ने लोगों का सुख-चैन छीन लिया है। हर व्यक्ति अपने जीवन में अधिक पाने की होड़ में भाग रहा है। इसी कारण वे तनावपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।

7. सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से त्रगता था मानो जयजयवंती के सुर गुँज रहे हों।

उत्तर- इस पंक्ति का आशय यह है कि चाय परोसने वाले ने अपना कार्य इतने सलीके से किया मानो कोई कलाकार बड़ी ही तन्मयता से सुर में गीत गा रहा हो।

8. अपने जीवन की किसी घटना का उल्लेख कीजिए जब –

(क) शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।

(ख) शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।

 

अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले - निदा फाज़ली

 

अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले

- निदा फाज़ली

1. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्‍या प्रभाव पड़ा?

उत्तर – बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ा है क्योंकि बढ़ती आबादी के आवास की समस्या से निपटने के लिए मानव ने समुद्र के रेतीले तटों पर बस्ती बसाकर उसकी लहरों तक को सीमित कर दिया है। आसपास के जंगल काट-काटकर नष्ट करके पेड़ो को रास्तों से हटा दिया। परिणामस्वरूप पर्यावरण असंतुलित हो गया जिस कारण प्राकृतिक आपदाएँ भूकंप, बाढ़, तूफान, गर्मी, तेज़ वर्षा आदि दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। तथा इनके कारण लोगों को कई बीमारियाँ हो रही हैं।

2. समुद्र के गुस्से की क्‍या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?

उत्तर - समुद्र का लगातार सिमटना ही उसके गुस्से की वजह थी। कई वर्षों से बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे धकेलकर उसकी जमीन पर कब्ज़ा कर रहे थे और बेचारा समुद्र लगातार अपना स्वरुप छोटा बनाते हुए सिमटता चला जा रहा था। (लेखक मानुषी का रूपक बना यह बात समझता है कि पहले समुद्र ने अपनी टाँगों को समेटा, फिर उकड़ू बैठ गया फिर वह खड़ा हो गया। पर जब खड़े होने कि भी जगह न बची तो उसको गुस्सा आ गया।) अतः जब उसे गुस्सा आया तो उसने गुस्से में अपनी लहरों पर दौड़ते तीन जहाज़ों को उठाकर तीन दिशाओं में फेंक दिया। एक वर्ली समुद्र किनारे, दूसरा बांद्रा में कार्टर रोड़ के सामने और तीसरा गेट-वे-ऑफ़ इंडिया पर गिरा।

3. मट्ठी से मट्टी मिले, खो के सभी निशान।

किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान॥

इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्‍या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि सभी प्राणियों का निर्माण मिट्टी से हुआ है। और अंत में इसी मिट्टी में हमें मिल जाना है अर्थात मनुष्य और अन्य जीव-जन्तु सभी समान हैं। उनमें भेदभाव करना उचित नहीं हैं। हमें मिलजुलकर आपसी सौहार्द से रहना चाहिए।

(ग) निम्नलिखित के आशय सपष्ट कीजिए -

1. नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ सा पहले बंबई में देखने को मिला था।

उत्तर - उपर्युक्त पंक्तियों का आशय यह है कि अति सर्वत्र वर्जयेत अर्थात किसी भी चीज़ की अधिकता अच्छी नहीं होती क्योंकि सामने वाले की सहनशक्ति की अपनी एक सीमा होती है फिर चाहे वह प्रकृति हो या इंसान। यदि उससे अधिकाधिक छेड़छाड़ की जाएगी तो उसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता है। जैसा कि कुछ वर्षों पूर्व हमें बंबई में समुद्र द्वारा फेंके गए तीन जहाजों के जरिए देखने मिला था। जो दुबारा कभी समुद्र पर नहीं चल पाये।

2. जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।

उत्तर - उपर्युक्त पंक्तियों का आशय यह है कि महान लोगों में अपनी इन्द्रियों को काबू करने की क्षमता होती है। वे क्षमाशील होते हैं वैसे भी महानता क्रोध करने और दंड देने में न होकर क्षमा करने में होती है। शायद इसलिए जगत में कहावत बनी है छिमा बदन को चाहिए छोटन को उत्पात

3. इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल लिया है।

उत्तर - उपर्युक्त पंक्तियों का आशय यह है कि बढ़ते शहरीकरण ने पक्षियों से उनक घर छीन लिए हैं इसलिए कुछ पक्षियों ने अपने ठिकाने बदल दिए हैं और जो अपने ठिकाने नहीं बदल सके उन्होंने शहर की इमारतों पर यहाँ वहाँ अपना डेरा डाल लिया है।

4. शेख अयाज के पिता बोले, 'नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।' इन पंक्तियों में छिपी हुई उनकी भावना को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - उपर्युक्त पंक्तियों का आशय यह है कि इंसान हो या पशु-पक्षी सबका अपना घर-परिवार होता है। हमें कोई हक़ नहीं बनता कि हम किसी को भी उसके घर से बेघर करें। इसी बात का अहसास जब शेख अयाज को होता है तो वे तुरंत उस च्योंटे को उसके घर छोड़ने चले जाते हैं।

तीसरी कसम के शिल्पकार: शैलेंद्र - प्रहलाद अग्रवाल

 

तीसरी कसम के शिल्पकार: शैलेंद्र

- प्रहलाद अग्रवाल

1.     'तीसरी कसम' फ़िल्म को कौन-कौन-से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?

          राष्ट्रपति स्वर्णपदक, बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार और मास्को फ़िल्म फेस्टिवल पुरस्कार से 'तीसरी कसम' फ़िल्म को सम्मानित किया गया है।

2.     राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फिल्मों के नाम बताइए।

          मेरा नाम जोकर, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्, संगम, प्रेमरोग, अजंता, जागते रहो, मैं और मेरा दोस्त आदि राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फिल्मों के नाम हैं।

3.     'तीसरी कसम' फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?

          'तीसरी कसम' के नायक राजकपूर और नायिका वहीदा रहमान थीं। राजकपूर ने इस फ़िल्म में 'हीरामन' गाड़ीवान का किरदार और वहीदा रहमान द्वारा नौटंकी कलाकार 'हीराबाई' का किरदार निभाया गया था।

4.     समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?

समीक्षक राजकपूर को कला मर्मज्ञ तथा आँखों से बात करनेवाला कलाकार मानते थे।

5.     'तीसरी कसम' फ़िल्म को 'सैल्यूलाइड पर लिखी कविता' क्‍यों कहा गया है?

सैल्यूलाइड अर्थात् रील; जैसे रील पर उतरते चित्र एक के बाद एक दृश्य प्रस्तुत करते हुए पूरी कहानी बड़ी सहजता से बता देते हैं वैसे ही यह फ़िल्म एक आम आदमी के जीवन की कहानी को सहज रूप में प्रस्तुत कर देती है।

इस फ़िल्म को देखकर कविता जैसी अनुभूति होती है क्योंकि यह फ़िल्म भी कविता के समान भावुकता, संवेदना, मार्मिकता से भरी हुई कैमरे की रील पर उतरी हुई फ़िल्म है। जिसमें हम स्वयं के जीवन को महसूस कर पाते हैं और उस कविता जैसी कहानी में कहीं खो से जाते हैं। बस इसलिए 'तीसरी कसम' फ़िल्म को 'सैल्यूलाइड पर लिखी कविता' कहा गया है।

6.     'तीसरी कसम' फ़िल्म को खरीददार क्‍यों नहीं मिल रहे थे?

          यह फ़िल्म एक सामान्य कोटि की मनोरंजक फ़िल्म न होकर एक उच्च कोटि की साहित्यिक फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में अनावश्यक मनोरंजक मसाले नहीं डाले गए थे। अतः कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं था इसलिए 'तीसरी कसम' फ़िल्म को खरीददार नहीं मिल रहे थे।

7.     शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?

          शैलेन्द्र के अनुसार हर कलाकार का यह कर्तव्य है कि वह दर्शकों की रुचियों को ऊपर उठाने का प्रयास करें न कि दर्शकों का नाम लेकर सस्ता और उथला मनोरंजन उन पर थोपने का प्रयास करे।

 

 

8.      राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी कवि शेलेंद्र ने यह फ़िल्म क्‍यों बनाई?

          राजकपूर जैसे अनुभवी निर्माता के आगाह करने के बावजूद शैलेन्द्र ने फ़िल्म इसलिए बनाई क्‍योंकि उन्हें धन-सम्मान की कामना नहीं थी वे तो केवल अपनी आत्मसंतुष्टि, अपनी मन की भावनाओं की अभिव्यक्ति और दर्शकों के मन को छूना चाहते थे। इसलिए नफ़ा-नुकसान के परे और अपने कलाकार मन के साथ समझौता न करते हुए उन्होंने फ़िल्म का निर्माण किया।

9.      'तीसरी कसम' में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।

          तीसरी कसम फ़िल्म में राजकपूर जी ने हीरामन का किरदार कुछ इस तरह निभाया कि लोग भूल ही गए कि यह मात्र एक फ़िल्मी किरदार मात्र है जिसका अभिनय राजकपूर कर रहे हैं। उन्होंने हीरामन को आत्मसात् करते हुए भी अपने आप को उस पर हावी नहीं होने दिया था।

          राजकपूर ने हीरामन गाड़ीवान का भोलापन, हीराबाई में अपनापन खोजना, उसकी उपेक्षा पर अपने ही आप से जूझना आदि को इतनी खूबसूरती से पेश किया है कि लोग उस हीरमान में राजकपूर को कहीं खोज ही नहीं पाए।

10.  लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि 'तीसरी कसम' ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?

          तीसरी कसम एक शुद्ध साहित्यिक फ़िल्म थी। इस कहानी के मूल स्वरुप में जरा भी बदलाव नहीं किया गया था। क्योंकि इस फिल्म की पटकथा और मूल कहानी (मारे गए गुलफ़ाम) के लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ही हैं साथ ही शैलेन्द्र ने इस फ़िल्म में दर्शकों के लिए किसी भी प्रकार के काल्पनिक मनोरंजन को जबरदस्ती स्थान नहीं दिया था। इसलिए लेखक ने ऐसा लिखा है कि 'तीसरी कसम' ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है।

11.  शैलेंद्र के गीतों की क्‍या विशेषताएँ हैं? अपने शब्दों में लिखिए।

          शैलेन्द्र के गीत सरल, सहज, संदेशात्मक और मन को छूनेवाले होते थे। उनके गीतों में गहराई के साथ आम आदमी से जुड़ाव भी होता था। उनके गीतों में समस्या से जूझने के साथ समस्या से निपटने के उपाय भी शामिल होते थे।

12.  फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

          तीसरी कसम फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेन्द्र की पहली और अंतिम फ़िल्म थी। यह फ़िल्म उन्होंने बिना किसी व्यावसायिक लाभ, प्रसिद्धि की कामना नकरते हए केवल अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए बनाई थी। उनके सीधे-साधे व्यक्तित्व की छाप उनकी फ़िल्म के किरदार हीरामन में बखूबी दिखाई देती है। शैलेन्द्र फ़िल्म निर्माण के खतरों से परिचित होकर भी एक शुद्ध साहित्यिक फ़िल्म का निर्माण कर अपने साहसी होने का परिचय दिया है। सिद्धांतवादी होने के कारण उन्होंने अपनी फ़िल्म में कोई भी परिवर्तन स्वीकार नहीं किया।

तताँरा-वामीरो कथा - लीलाधर मंडलोई

 

तताँरा-वामीरो कथा

- लीलाधर मंडलोई

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) देखिए -

1- निकोबार द्वीपसमूह के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का क्‍या विश्वास है?

उत्तर:- निकोबार द्वीपसमूह के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का विश्वास है कि पहले यह दोनों द्वीप एक ही थे जो तताँरा वामीरों की असफल प्रेम की त्रासदी के फलस्वरूप दो अलग-अलग द्वीपों में बदल गए।

2- तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद कहाँ गया? वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर:- तताँरा दिनभर के अथक परिश्रम करने के बाद समुद्र किनारे टहलने निकलता है। उस समय सूरज डूबने का समय हो रहा था। समुद्र से ठंडी बयारें चल रही थी। पक्षियों के घोसलों में लौटने का समय भी हो चला था इसलिए उनकी आवाजें धीरे-धीरे कम हो गई थीं। सूरज की अंतिम किरणें समुद्र पर प्रतिबिम्ब अंकित कर रही थी।

3- वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में क्‍या परिवर्तन आया?

उत्तर:- वामीरो के मिलने के पश्चात्‌ तताँरा हर-समय वामीरो के ही ख्याल में ही खोया रहता था। उसके लिए वामीरो के बिना एक पल भी गुजारना कठिन-सा हो गया था। वह शाम होने से पहले ही लपाती की उसी समुद्री चट्टान पर जा बैठता, जहाँ वह वामीरो से पहली बार मिला था और पुनः-पुनः उसके आने की प्रतीक्षा किया करता था।

4- प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति-प्रदर्शन के लिए किस प्रकार के आयोजन किए जाते थे?

उत्तर:- प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति-प्रदर्शन के लिए मेले, पशु-पर्व कुश्ती, गीत संगीत आदि अनेक प्रकार के आयोजन किए जाते थे। जैसे पशु-पर्व में हृष्ट-पुष्ट पशुओं का प्रदर्शन किया जाता था तो पुरुषों को अपनी शक्ति प्रदर्शन करने के लिए पशुओं से भिड़ाया जाता था। इस तरह के आयोजनों में सभी गाँव वाले भाग लेते थे और गीत-संगीत के साथ भोजन आदि की भी व्यवस्था की जाती थी।

5- रूढियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। क्यों? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- रूढियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है क्योंकि तभी हम समय के साथ आगे बढ़ पाएगे। बंधनों में जकड़कर व्यक्ति और समाज का विकास, सुख-आनंद, अभिव्यक्ति आदि रुक जाती है। यदि हमें आगे बढ़ना है तो इन रूढ़ीवादी विचारधाराओं को तोड़ना ही होगा।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए -

1- जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा।

उत्तर:- इस पंक्ति का आशय यह है कि तताँरा अपने अपमान को सहन नहीं कर पाया। अपने अपमान को शांत करने के लिए उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर धरती में अपनी तलवार घोंप दी। जिसके परिणास्वरूप धरती दो टुकड़ों में बट गई।

2- बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी।

उत्तर:- इस पंक्ति के जरिए तताँरा के मन की उधेड़बुन को दर्शाया गया है। जो वामीरों से मिलने की प्रतीक्षा में वह बैचैन रहता था। उसकी प्रतीक्षा आशा और निराशा के बीच झूलती रहती थी।

पर्वत प्रदेश में पावस - सुमित्रानंदन पंत

 

पर्वत प्रदेश में पावस 

- सुमित्रानंदन पंत

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

1. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति प्रतिपल नया वेश ग्रहण करती दिखाई देती है। इस ऋतु में प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन आते हैं -

·       पर्वत पर असंख्य फूल खिल जाते हैं।

·       जिस तालाब में पर्वत अपना महकार देखता था जब उस तालाब से घना कोहरा उठता है तब ऐसा प्रतीत होता है कि मानों तालाब जल गया है।

·       पर्वतों से बहते हुए झरने मोतियों की लड़ियों से प्रतीत होते है।

·       पर्वत पर वृक्ष इतने ऊँचे हो जाते है कि मानों आकाश की ओर एकटक देख रहे हों।

·       सघन बादलों के छा जाने से पर्वत अदृश्य हो जाता है मानों कि वे पर्वत बादल के पंख लगाकर कहीं उड़ गए हों

·       आकाश में तेजी से इधर-उधर विचरते हुए बादल, अत्यंत आकर्षक लगते हैं।

2. 'मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्‍यों किया है?

उत्तर- 'मेखलाकार' शब्द का अर्थ है - 'करधनी' के आकार के समान। यह कमर वाले भाग में पहनी जाती है। कवि ने इस शब्द का प्रयोग पर्वत की विशालता दिखाने और प्रकृति के सौंदर्य को बढ़ाने के लिए किया है।

3. 'सहस्र दृग-सुमन' से क्‍या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?

उत्तर- कवि ने इस पद का प्रयोग सजीव चित्रण करने के लिए किया है। 'सहस्र दृग-सुमन' का अर्थ है - हजारों पुष्प रूपी आँखें। कवि ने इसका प्रयोग वर्षाकाल में पर्वत पर खिलने वाले फूलों के लिए किया है। कवि इन पुष्पों में पर्वत की आँखों की कल्पना कर रहा है। और मानों पर्वत अपने इन सुंदर नेत्रों से स्वयं का महा आकार नीचे जल में निहार रहा है।

4. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्‍यों?

उत्तर: कवि ने तालाब की तुलना दर्पण से की है क्‍योंकि तालाब का जल अत्यंत स्वच्छ व निर्मल है। क्योंकि दोनों ही प्रतिबिंब दिखाने में सक्षम है। जैसे तालाब के जल में पर्वत और उस पर लगे हुए फूलों का प्रतिबिंब स्वच्छ दिखाई दे रहा था।

5. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्‍यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?

उत्तर- पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर अपनी उच्चाकांक्षाओं के कारण देख रहे थे। वे बिल्कुल मौन रहकर स्थिर रहकर भी संदेश देते प्रतीत होते हैं कि उद्देश्य को पाने के लिए अपनी दृष्टि स्थिर करनी चाहिए क्योकि आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए शांत मन तथा एकाग्रता की आवश्यक है।

6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्‍यों धँस गए?

उत्तर- कवि के अनुसार वर्षा इतनी तेज और मूसलाधार थी कि ऐसा लगता था मानो आकाश धरती पर टूट पड़ा हो। चारों ओर धुंध छा जाता है, पर्वत, झरने आदि सब अदृश्य हो जाते हैं। ऐसा लगता है मानो तालाब में आग लग गई हो। चारों तरफ धुआँ-सा उठता प्रतीत होता है। वर्षा के ऐसे भयंकर रूप को देखकर उच्च-आकांक्षाओं से युक्त विशाल शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धसे हुए प्रतीत होते हैं।

7. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

उत्तर- झरने पर्वतों की उच्चता और महानता के गौरव का गान कर रहे हैं। कवि ने बहते हर झरनों की तुलना मोतियों की लड़ियों से की है।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -

1. है टूट पड़ा भू पर अंबर

उत्तर- जिसतरह कोई क्षुधा व्याधि से पीढ़ित व्यक्ति भोजन कि थाली पर टूट पड़ता है तो थोड़ी ही देर में थाली से भोजन गायब हो जाता है वैसे ही वर्षा इतनी तेज और मूसलाधार है कि ऐसा लगता है मानो आकाश धरती पर टूट पड़ा हो। सारे पर्वत को बादलों से ढक दिया हो। अतः अब पर्वत बिल्कुल भी दिखाई नहीं दे रहे। इसलिए अब पर्वत पर स्थित झरना भी नहीं दिखता बस झरने का शोर ही शेष रह गया है।

2. यों जलद-यान में विचर-विचर

    था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

उत्तर- इसका भाव है कि पर्वतीय प्रदेश में वर्षा के समय में क्षण-क्षण होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों तथा अलौकिक दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो वर्षा का देवता इंद्र बादल रूपी यान पर बैठकर जादू का खेल दिखा रहा हो। जिसकारण आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देखकर ऐसा लगता कि मानों बड़े-बड़े पहाड़ अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए उड़ रहे हों। बादलों का उड़ना, चारों और धुआँ होना और मूसलाधार वर्षा का होना ये सब जादू के खेल के समान दिखाई देते हैं।

3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर

    उच्चाकांक्षाओं से तरुवर

    हैं झाँक रहे नीरव नभ पर

    अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उत्तर- इसका भाव है कि वृक्ष भी पर्वत के हृदय से उठ-उठकर ऊँची आकांक्षाओं के समान शांत आकाश की ओर देख रहे हैं। इसके हम अनेक दृष्टियों से देख सकते हैं।

1.     वे आकाश की ओर स्थिर दृष्टि से देखते हुए यह प्रतिबिंबित करते हैं कि वे आकाश की ऊँचाइयों को चाहते हैं। और इसके लिए अपनी दृष्टि स्थिर करके चुपचाप मौन रहकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहते हैं।

2.     पर यदि आकाश की ऊँचाइयों से नीचे देखें तो स्वयं का आधार जिस पर वृक्ष स्थित है ऐसा पर्वत भी अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा है अतः उन्हें चिंता होती है कि अब वे पुनः कहाँ जाएँगे?

3.     दूसरों के बीच ताक-झांक करने वाले स्वयं का नुकसान कर बैठते हैं अतः हमने अपने ऊपर ज्यादा ध्यान देना चाहिए न कि दूसरों के ऊपर।